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न धूप को है / केदारनाथ अग्रवाल
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न धूप को है
न और को है
अपना एहसास
मगर है
जैसे नहीं है
आदमी के पास
आदमी की शक्ल
आदमी का बोध
आदमी की अक्ल
उसका अस्तित्व
सपाट है--
सपाट
नदारद अस्तित्व का
अनंत सुनसान
(रचनाकाल : 27.01.1968)