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न पैसा जेब में है और नहीं कोई ख़ज़ाना है / अविनाश भारती

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न पैसा जेब में है और नहीं कोई ख़ज़ाना है,
ज़ुबां ज़िंदा मेरी है बस इसी ख़ातिर निशाना है।

सियासत बाँटती कंबल, शराफ़त से नज़ाकत से,
जगी इंसानियत है या ये वोटों का बहाना है।

मची है होड़ मौला बस ज़माने में दिखावे की,
हमारे पास क्या है जो ज़माने को दिखाना है।

असर होगा नहीं कुछ भी, ये दुनिया ख़ाक बदलेगी,
जहाँ पत्थर की मूरत हो, वहाँ क्या गीत गाना है।

सुनो 'अविनाश' मुश्किल है ग़ज़ल की धार से बचना,
यहाँ दुष्यंत से वाक़िफ़ अभी सारा ज़माना है।