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न फूल केवल ये ख़ार देखो / कैलाश झा 'किंकर'

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न फूल केवल ये ख़ार देखो
ग़ज़ल की कैसी है धार देखो।

न जीत में भी ये हार देखो
अहं का चश्मा उतार देखो।

बहुत हैं चमचे-दलाल जग में
बचा के दामन ऐ यार देखो।

सजी है महफ़िल मगर यहाँ पर
तमाशबीनों की रार देखो।

जिन्हें न चलना शऊर से है
उन्हीं के गर्दो-गुबार देखो।

सदा सभी के जो काम आता
उसी के जीवन में ज्वार देखो।

अभी तो चलना शुरू किया है
ज़रा-सा ख़ुद को सुधार देखो।

सुरों के कायल सभी हैं होते
अदब में नगमा-निगार देखो।