न बाहर, न बाद / हरीश बी० शर्मा
ढाणियों पर राज को
बाँटने समाज को
चलती है तलवारें
रिश्तों की गर्मी पिघल जाती है रोज़
खुलते हैं अपने-अपने क्षेत्र
कह दें कुरुक्षेत्र
रचती है महाभारत
पीढ़ियाँ पढ़ाने के लिए
घड़ दिया जाता है इतिहास
द्रोपदी की लाज, पांडवों का वनवास
कृष्ण का अघोषित रास
आज भी बिकता है।
कृष्ण की गवाही पर पांडव बरी
शकुनि की कोशिशें नाकाम
दुर्योधन बदनाम
त्रियाचरित्र के क्लाईमैक्स के साथ
ख़त्म होता है महाभारत
सत्यवती से द्रोपदी तक सबूत ही सबूत
महाभारत खत्म होता है
भीष्म को मिलता है
लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवार्ड
शिखंडी यहाँ भी नहीं होता है
अन्न के कांसेप्ट पर झुक जाते हैं सबके शीश
फिर कौन पूछे भीष्म से महाभारत का कारण
आज भी छाती ठोककर कहता है वेदव्यास
न जयसंहिता से बाहर, न है कुछ भी इसके बाद
दोहराई जाती है द्रोपदी
सम्मान पाते हैं देवव्रत साहब।