भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
न बुलाओ तुम मुझे इस समय... / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
न बुलाओ तुम मुझे इस समय अपने पास
खोदनी है अभी मुझे
आसपास उग आई बेकार विचारों की घास,
तोड़ने हैं मुझे अभी
भाव की भूमि की कुंठा के बाँस,
जोड़नी है मुझे अभी
टूट चले जीवन की एक-एक साँस !
न बुलाओ तुम मुझे इस समय अपने पास !