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न मुझसे कह कि चमन में बहार आई है / सौदा
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न मुझसे कह कि चमन में बहार आई है
ये मुर्ग़े-कुश्तनी[1] कब क़ाबिले-रिहाई है
असर किया तेरे दिल में मुझ अश्क ने[2] तो क्या
डुबा के ख़ल्क़[3] को किश्ती मिरी तिराई है
तिरे निकाले से तुझ घर से कौन जाता है!
वही तो जायेगा प्यारे कि जिसकी आई है
ग़ुरूरे-तक़वा से[4] कितने थे शैख़ जी सरकश[5]
पर अब अमामा[6] ने गर्दन तनिक नवाई है
गए थे आप ख़ुदावंद सैरे-बाग़ कि गुल
जहाँ खिले है वहाँ बू-ए-किब्रियाई[7] है
करे हैं दर पे तिरे शैख़ो-बरहमन सज्दा
बुतों की हुस्नो-अदा तेरे घर की ख़ुदाई है
तने-गुदाज़[8] में दिल क्योंके[9] तैं[10] रखा 'सौदा'
ये आग पानी में किस सेहर[11] से छिपाई है