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न याद न जादू / मिक्लोश रादनोती

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अब तक मेरे दिल में सारा गुस्सा इस तरह छिपा रहता था
जैसे सेब के बीचोबीच गहरे भूरे रंग के बीज छिपे रहते हैं।
और मैं जानता था कि मेरे पीछे-पीछे हाथ में तलवार लिए एक फ़रिश्ता चलता है
जो मुसीबत के वक़्त मेरी हिफ़ाज़त करता है, मुझे बचाता है।
लेकिन किसी बीहड़ दिन तुम सुबह उठो और पाओ
कि सब कुछ बर्बाद हो चूका है और तुम भूत की तरह निकल जाते हो
अपनी जो थोड़ी बहुत चीज़ें थीं उन्हें छोड़कर, क़रीब-क़रीब नंगे,
तो तुम्हारे ख़ूबसूरत दिल में, जो अब हल्का हो चुका है,
एक वयस्क नम्रता जागने लगती है, संजीदा, संकोची
और अगर तब तुम कहोगे विद्रोह तो दूसरों के लिए कहोगे और वैसा निःस्वार्थ करोगे

और यह एक ऐसे मुक्त भविष्य की आशा में कहोगे जो दूर से ही दमक रहा है।
मेरे पास कभी कुछ नहीं था और न आगे कभी होगा
जाओ और ज़रा एक लम्हे के लिए मेरी ज़िन्दगी की इस दौलत पर विचार करो

मेरे दिल में कोई गुस्सा नहीं है, बदले की मुझे परवाह नहीं
यह दुनिया फिर से बनाई जाएगी--मेरी कविताओं पर रोक लगने दो
मेरी आवाज़ हर नई दीवार की नींव के पास सुनी जाएगी
अपने में मैं वह सब कुछ जी रहा हूँ जो बाकी दिनों में मुझ पर होगा
मैं पीछे मुड़कर नहीं देखूंगा क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं किसी भी तरह नहीं बचता
न मुझे कोई याद बचाएगी न कोई जादू--मेरे ऊपर का आसमान मनहूस है
अगर तुम मुझे कहीं देखो दोस्त तो कंधे झटक देना और मुड़ जाना
जहाँ पहले तलवार के लिए एक फ़रिश्ता था
वहाँ शायद अब कोई नहीं है।


रचनाकाल : 30 अप्रैल 1944

अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे