भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न राहुल से न मोदी से न खाकी से न खादी से / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न हाकिम से, न मुंसिफ़ से, न ख़ाकी से, न खादी से।
वतन की भूख मिटती है तो होरी की किसानी से।

ये फल दागी हैं मैं बोला तो फलवाले का उत्तर था,
मियाँ इस देश में सरकार तक चलती है दागी से।

ख़ुदा के नाम पर जो जान देगा स्वर्ग जायेगा,
ये सुनकर मार दो जल्दी कहा सबने शिकारी से।

ये रेखा है गरीबी की जहाज़ों से नहीं दिखती,
ज़मीं पर देख लोगे पूछकर अंधे भिखारी से।

चुने जिसको, सहे उसके सितम चुपचाप ये ‘सज्जन’,
ज़माने तंग आया मैं तेरी आशिक़ मिज़ाजी से।