भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
न रोकते हैं निगाहों से यहाँ पीने से / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
न रोकते हैं निगाहों से यहाँ पीने से
मगर मना है लगा लेना उनको सीने से
पिलाने आये वे घूँघट में मुँह छिपाए हुए
सुराही फेर लें, बाज़ आये ऐसे पीने से
मिली है प्यार की ख़ुशबू तो हर तरफ़ से हमें
भले ही बीच में परदे पड़े हैं झीने-से
हमारे सामने आने में भी झिझक थी जिन्हें
गले-गले हैं वही आज थोड़ी पीने से
अभी से मोड़ न मुँह, बेरहम! अभी तो नहीं
भरा है जी तेरी अँगडाइयों में जीने से
भले ही प्यार में आँसू न पोंछता हो कोई
गुलाब और भी चमका है इस नगीने से