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न समझ आने वाला / इमरोज़ / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
आर्ट स्कुल में
इक ख़ूबसूरती मेरी हमजमात थी
वह जब भी क्लास में आती
मैं सीट से उठकर उसे देखता
वह भी कभी-कभी देखते को देख लेती
मुस्कुरा भी लेती
इक दिन लंच के वक़्त जब क्लास
लंच के लिए गई हुई थी
वह मेरे पास आई और बैठ कर पूछा
तुम मेरी खूबसूरती में ख़ास क्या देखते हो हर रोज ..?
तेरी खूबसूरती में इक ख़ास खूबसूरती है
जिसे देख कर मैं खूबसूरत होता रहता हूँ
तुम कोई ख़ास हो
स्टूडेंट होते हुए भी तुम कहीं ज्यादा हो अपने आप से
न समझ आने वाला...