Last modified on 13 जुलाई 2015, at 14:26

न समझ आने वाला / इमरोज़ / हरकीरत हकीर

आर्ट स्कुल में
इक ख़ूबसूरती मेरी हमजमात थी
वह जब भी क्लास में आती
मैं सीट से उठकर उसे देखता
वह भी कभी-कभी देखते को देख लेती
मुस्कुरा भी लेती
इक दिन लंच के वक़्त जब क्लास
लंच के लिए गई हुई थी
वह मेरे पास आई और बैठ कर पूछा
तुम मेरी खूबसूरती में ख़ास क्या देखते हो हर रोज ..?
तेरी खूबसूरती में इक ख़ास खूबसूरती है
जिसे देख कर मैं खूबसूरत होता रहता हूँ
तुम कोई ख़ास हो
स्टूडेंट होते हुए भी तुम कहीं ज्यादा हो अपने आप से
न समझ आने वाला...