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न साथ देगा कोई राह आश्ना मेरा / 'गुलनार' आफ़रीन

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न साथ देगा कोई राह आश्ना मेरा
जुदा है सारे ज़माने से रास्ता मेरा

गुज़र के आई हूँ मैं ग़म के रेग-ज़ारों से
नज़र उदास है दिल है दुखा हुआ मेरा

न जाने किस लिए क़ातिल के अश्क भर आए
फ़राज-ए-दार पे जब सामना हुआ मेरा

दयार-ए-जाँ में फ़रोज़ँा रहेगी शम्मा-ए-हयात
समझ लिया तेरी आँखों ने मुद्दआ मेरा

किया है पेश तुझे आँसुओं का नज़राना
हुजूम-ए-शाम-ए-अलम और दिल जला मेरा

वो सानेहा मेरे दिल पर गुज़र गया ‘गुलनार’
हर एक हर्फ़-ए-दुआ बे-सदा हुआ मेरा