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न हो उदास ये कहते हैं हरसिंगार के गुल / कुमार नयन

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न हो उदास ये कहते हैं हरसिंगार के गुल
खिलेंगे देखना इक दिन तुम्हारे प्यार के गुल।

फ़ज़ा में ज़हर है यारो उठो न चुप बैठो
बचा लो जैसे भी हो अपने-अपने यार के गुल।

उठा के चूम लो या पांव से कुचल डालो
बिछे हैं राह में चुपचाप ख़ाकसार के गुल।

अजीब बात है मौसम का कुछ वजूद नहीं
ख़िजां का रंग लिए हैं यहां बहार के गुल।

उदास गुंचो को देखा तो खुल सकी न ज़बां
चमन से मांगने वाले थे हम उधार के गुल।

लहू-लहू न कहीं दिल ही मेरा हो जाये
खिले हैं आज फ़क़त सुर्ख़ बेक़रार के गुल।

तुम्हारी ज़ुल्फ़ की ख़ुशबू तुम्हारा लम्से-नज़र
सफ़र में साथ रहेंगे ये यादगार के गुल।