पंचर : कुछ नोट्स / नेहा नरुका
1.
कट्टर हिन्दू पंचरवालों से कितनी घृणा करते हैं
इसका अ मुझे तब हुआ।
जब मैं एक मीटिंग में अपने अधिकारी के साथ थी। वह कुतर्क पर कुतर्क गढ़ रहा था।
और मेरे सहकर्मी ही ही करके हँस रहे थे
इस तरह उच्च शिक्षा पर आयोजित उस मीटिंग का अंत एक अश्लील व हिंसक चुटकुले पर हुआ।
2.
मैं रोज़ सुबह पंचर की दुकान पर बैठकर अपनी बेटी की बस की इंतज़ार करती हूँ।
यह काम मैं पिछले दो साल से कर रही होऊँगी।
सुबह का अख़बार अक्सर मैंने उस दुकान पर ही देखा।
दुकानदार अक्सर हँसते हुए बेटी से पूछता है: टिफ़िन में क्या है आज ?
कभी-कभी वह पंचर जोड़ता है मैं देखती हूँ:
एक तसले में भरा रहता है पानी
उस पानी में टायर का ट्यूब डुबोकर वह झट से ढूढ़ देता है छेद
कमाल की बात यह है वह उसे बंद भी कर देता है
और गाड़ी का पहिया फिर घूमने लगता है
मुल्क का पहिया भी तो पंचर है
क्या उसे नहीं जोड़ सकता पंचरवाला ?
3.
वे ऐसे कह रहे हैं जैसे पंचर जोड़ना
बहुत छोटा काम हो
और गद्दी पर बैठना बहुत बड़ा
और मुझे याद आ रहे हैं वे लोग
जो कहते थे जहाँ सुई की ज़रूरत हो वहां तलवार क्या करेगी
वैसे सच कहूँ तलवार और गद्दी दोनों जुल्म ढोने के सिवाय करती ही क्या हैं ?
4.
"देखो, मेरे टायर में कोई समस्या है शायद ?"
स्कूटी रोककर मैंने कहा-
उसने चेक किया और बताया: 'कोई समस्या नहीं है।"
"कितने पैसे ?"
"जब समस्या नहीं तो कैसे पैसे ?"
'समय के...'
कहते कहते रुक गई मैं
तो छोटे ज़गहों पर लोग समय भी मुफ़्त में दे देते हैं !
मैंने सोचा।
समय जो सबसे कीमती है
जिसे लेने के लिए छोटी-बड़ी कम्पनियां जी जान से लगी हैं
उस समय को पंचरवाले ने मुझे यूँ ही दे दिया।
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अप्रैल 2025