भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पंछी-एक / हरि शंकर आचार्य
Kavita Kosh से
खुलै आभै मांय
मुगत उडतो पंछी
सै सीमावां
सै बंदिसां नैं तोड़’र
पूगावै
सांति अर भायलापणै रो सनेसो
जगत रै छोटै सूं छोटै जीव तांई।
आपरी अठखेल्यां रै मायाजाळ मांय
मिनख रै बणायोड़ी अबखायां सूं
डर्यै बिना पूगावै,
भेळप रो सनेसो
दसूं दिसावां री सांतरी जगावां तांई।