भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पंथ दौलत से न जीता जाएगा / मुकुट बिहारी सरोज
Kavita Kosh से
पंथ दौलत से न जीता जाएगा नादान !
स्वर्ण-कलशों में भरे मणियाँ
हज़ारों देवता भागे ।
झुक गई लेकिन करोड़ों बार
दौलत धूल के आगे ।
धूल की कैसे ख़रीदेगा अकिंचन आबरू
राख में लिपटे पड़े हैं सैकड़ों भगवान ।
शीश वे, जिनपर कि
मलयानिल डुलाता था विजन ।
पाँव वे, जिन पर कि नित
माथा झुकाता था गगन ।
एक कण के राज्य की सीमा न पाए जीत
नत पड़े हैं विश्वविजयी दम्भ के अरमान !
तू अभी आरम्भ ही करने चला है
पुस्तिका का लेख ।
इसलिए उस हाथ फैलाए हुए
इंसान को भी देख ।
राह दोनों की बराबर है, बराबर चाह
हैं नहीं, लेकिन बराबर राह के सामान !