पंथ बदला है हमारा / सुमित्रा कुमारी सिन्हा
पंथ बदला है हमारा किंतु दोनों चल रहे हैं !
एक दीपक की शिखा-सा तिमिर धोकर प्रात लाता,
एक शलभों-सा स्वयं मिट साथ मंजिल तक निभाता,
भिन्न साधन सिद्धि के हैं किंतु दोनों जल रहे हैं !
पंथ बदला है हमारा किंतु दोनों चल रहे हैं !
एक है चंचल लहर-सा,नाव सा है एक डगमग,
एक है पथ रुद्ध-सा, अौ' एक केवल बढ़ रहे पग,
एक से ही दूसरे को किन्तु दोनों छल रहे हैं !
पंथ बदला है हमारा किंतु दोनों चल रहे हैं !
एक मेघों से भरे हिय से धरा को तृप्त करता,
एक गिरि के वज्र-उर से छूट पथ निर्माण करता,
लक्ष्य जीवन का पृथक् है किंतु दोनों गल रहे हैं !
पंथ बदला है हमारा किंतु दोनों चल रहे हैं !
आदि की है एक जीवित, स्वप्न-स्मृति की मधु कथा ही,
अंत की है एक कटुतापूर्ण अवहेलित व्यथा ही ,
सत्य सपनों के सहारे किंतु दोनों पल रहे हैं !
पंथ बदला है हमारा किंतु दोनों चल रहे हैं !