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पकवान / रचना उनियाल
Kavita Kosh से
सुनो बंधु पकवान पकाना, अति संयम का काम,
भावों के सागर में ड़ूबो, स्वाद बनेगा धाम॥
प्रेम भाव के रस में रमकर, स्वाद रहे भरमार,
धीमी आँच पकवान बनते, उदर तृप्ति हर बार॥
गजानन चतुर्थी आने पर, लगता मोदक भोग,
प्रसाद बूंदी लड्डू पायें, होवें प्रभु से योग॥
बालपन की याद में बसती, चावल की वह खीर।
मधु भाव से माता बनाती, हर जाती हर पीर॥
यदा कदा छोटी भगिनी को, आ जाता था प्यार,
पूरी आलू मटर दिलाये, सुगंध राखी ब्यार॥
आनंदित भार्या मन है तो, मनभावन मिष्ठान,
क्रोध भाव में हृदय उबलता, खाना मिले न पान॥
गुज़िया मठरी बरफ़ी सिवई, हलवाई का हाथ,
रुचि स्वाद संतुष्टि हैं पाते, खाते घर में साथ॥
गुलाबजामुन चाहे घेवर, लड्डू या सोंदेश,
प्रांत-प्रांत ख़ुशबू महकाये, करते मीठा पेश॥