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पचास साल से / भारत यायावर
Kavita Kosh से
खींचते हुए इस गाड़ी को
छिल गए हैं कन्धे
रिस रहा है ख़ून
ख़ून से लथपथ शरीर
पैरों के तलुवे में चुभे हुए असंख्य काँटे
दिशाएँ फिर भी काली हैं
आगे खाई है
ऊपर से आगे बढ़ने की
चाबुक की झटकार है
(रचनाकाल : 1997)