भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पछताना रह जायेगा / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
Kavita Kosh से
पछताना रह जायेगा, अगर न पाये चेत।
रोना धोना व्यर्थ है, जब खग चुग लें खेत॥
जब खग चुग लें खेत, फसल को चौपट कर दें।
जीवन में अवसाद, निराशा के स्वर भर दें।
'ठकुरेला' कविराय, समय का मोल न जाना।
रहते रीते हाथ, उम्र भर का पछताना॥