भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पटना-मुंबई बरसात / कुमार मुकुल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जनता नहीं है यह
के विकास की डाँड़ी खेवाते
अपने करतबों पर नचाते
किनारे करते रहोगे

यह पानी है 

इसकी जगह को
विकास के ईंट-पत्थरों से
भर दोगे
तो तुम्हारे घरों में 
घुस आएगा यह
और नरेटी तक चढ़ 
बंद कर देगा
तुम्हारी सांसें।