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पटरी ना खाई / जितराम पाठक
Kavita Kosh से
अरुआइल बा बात तहार, हटाव फरका,
ले अइब एने अब त पटरी ना खाई।
चूरी-टिकुली के हम सुनलीं गीत अनेकन
पाकि गइल बा कान,
कपार बथत बा फरके,
लागल हरके
तू बाड़ अइसन उजिआवन
दुपहरिया में गीत भोर के गावत बाड़
लागल बाटे आगि, बइठि पगुरावत बाड़
मारि फसकड़ा बइठल बाड़ महकल अइसन,
पगुरइब एने अब, त पटरी ना खाई।
देखल चोली
तहरा तब लेसि देलसि बाई,
मुसकी-मटकी पर भइल तू खूब पतवरा
आँचर तर घुसिअइल
चूमा-चाटी में कब से अझुराइल बाड़,
नाग-फाँस में कब से तूहीं धराइल बाड़ नवकी
नवकी बात बोलावति बाटे कब से देख,
ढेर चोन्हइब अबकी, त पटरी ना खाई।