भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पड़ोस की नदी / कुमार अनुपम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बेधड़क वह मिलने चली आती है घर में और मैं छत पर भागता हूँ परिवार समेत
सारा असबाब बत्तखों की तरह भागता-फिरता है घर-बाहर

उसकी तरह ही घर में दाख़िल होती है राप्ती
हाँ वही अचिरावती...