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पड़ रैयी है पार / नीरज दइया
Kavita Kosh से
फूलां री सौरम लियां पछै
भगवान रै नीं चढाइजता हा फूल।
बखत बखत री बात है
अबै किसै फूल माथै करां भरोसो
जे फूल बोलतो-बतळांवतो
अर कैवतो कै- ’म्हैं चढावणजोग हूं।’
तो करतो किंयां थूं पतियारो
जद कै थूं खुद ई, नीं बताय सकै
कै गीता री सौगन खायं पछै
कुण-कुण बोलै है- सांच!
ठीक है भायला!
पड़ रैयी है पार
भगवान कीं नीं बोलै
अर जे बोलै ई तो, कांई बोलै-
फूलां सारू?