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पढ़ रहे हम आपकी आँखों की भाषा / कैलाश झा ‘किंकर’

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पढ़ रहे हम आपकी आँखों की भाषा
सब सम़झ सकते नहीं प्यासों की भाषा।

यह सियासत है यहाँ की बात दीगर
कर रहे सदियों से वह नारों की भाषा।

बाढ़ में होती तबाही हर बरस है
राजनेता बोलते वादों की भाषा।

संकटों के इन पहाड़ों को हटाएँ
ये नहीं सुनते हैं अब संतों की भाषा।

प्यार शर्तों पर नहीं करता है कोई
आप भी मत बोलिए शर्तों की भाषा।

ज़िन्दगी ज़िन्दादिली का नाम है
यह समझती है फ़कत साँसों की भाषा।