भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पण आ तो बता / सांवर दइया
Kavita Kosh से
दुखां रै अंधारै में
आदमी रा गम्योड़ा सुख
सोधण खातर
किणी भी वाद री
बैसाखी माथै चढियोड़ो तूं
म्हारा भायला !
आदमी नै सुखी करू चावै
हर हाल में
पण आ तो बता
इण बैसाखी माथै
तूं सुखी है कांईं ?