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पतंग / बालकृष्ण गर्ग

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(1)
रूप अनोखा, प्यारे रंग,
उड़ती फिरूँ हवा के संग;
देख-देख तुम होते दंग,
कहते हैं सब मुझे ‘पतंग’।

(2)
रंग-बिरंगी उड़ें पतंग,
साथ हवा के, बढ़े पतंग;
आसमान में लड़ें पतंग,
जो हारें, गिर पड़े पतंग।
[राष्ट्रीय सहारा (लखनऊ, 4 नवंबर 1996]