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पतझड़ तो एक बहाना है / कल्पना 'मनोरमा'

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पतझड़ तो एक बहाना है।
मकसद वसंत का आना है।

क्यों मोल लगाते गैरों का ,
खुद को ही कब पहचाना है।

तितली पर पहरे हो कितने
उसको मकरंद चुराना है।

काँटे तो पोर-पोर होंगे
पर फूलों को मुसकाना है।

रातें कितनी हों अँधियारी ,
दीपक को धर्म निभाना है।

चिंगारी को रखना जीवित
यदि खरपतवार जलाना है।

बीते हैं कल्प यत्न करते
‘पर ये रहस्य अन्जाना है।