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पतझड़ देखे, सावन देखे और बहारें देखी हैं / शर्मिष्ठा पाण्डेय
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पतझड़ देखे, सावन देखे और बहारें देखी हैं
मखमली म्यानों में हमने तेज़ तलवारें देखी हैं
झोपड़ियों के तिनकों से क्या शपा शिकायत करती है
ऊँची-ऊँची दीवारों में खूब दरारें देखी हैं
बेशकीमती हाथी-दांत भी सजे रहे गलियारों में
मरे हुए कीड़ों पर भी चींटी की कतारें देखी हैं
बादल आयें या न आयें उनकी मर्ज़ी वो जानें
आँखों की सूखी धरती पर आज बौछारें देखी हैं
तंग कमीजों की कोरों पर रेशम जैसे पाले थे
उन्हीं आस्तीनों में साँपों की फुंफ्कारें देखी हैं
बड़े शौक में जिस ज़मीन पर देखे ख्वाब सितारों के
वहीं लाल चादर में लिपटी जिंदा मजारें देखी हैं