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पतझड़ / एमीली वेहाहेन / अनिल जनविजय

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सुबहें सर्द होने लगी हैं
समय ने पहन लिए हैं
कुहासे के कपड़े
नीले पंखों वाले
कबूतरों की गरदनों को
हवाओं ने अपनी गिरफ़्त में ले लिया है ।

मुर्गी कुड़कुड़ा रही है
अपने चहचहाते चूजों को
अपने परों के नीचे छुपाए।

कोहरे को पार कर एक किरण
नंगी तलवार की तरह गिर रही है,
जैसे समुद्री डाकू घुस आया हो कोई
अपनी दूरबीन के सहारे बुरे मौसम को पार कर ।

बेहद ठण्डी और कठोर होती जा रही है हवा
जाड़े की ठिठुरन से बचने के लिए
एक बिल्ली चूल्हे के पास दुबक जाती है

अचानक जंगल के कोने से
नीरस और बेसुरी आवाज़ें आने लगती हैं
जैसे सींग झनझना रहे हों ।

यह पतझड़ का मौसम है !

मूल फ़्रांसीसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल फ़्रांसीसी भाषा में पढ़िए
                 Emile Verhaeren
                        Automne

Matins frileux
Le temps se vêt de brume ;
Le vent retrousse au cou des pigeons bleus
Les plumes.

La poule appelle
Le pépiant fretin de ses poussins
Sous l’aile.

Panache au clair et glaive nu
Les lansquenets des girouettes
Pirouettent.

L’air est rugueux et cru ;
Un chat près du foyer se pelotonne ;
Et tout à coup, du coin du bois résonne,
Monotone et discord,
L’appel tintamarrant des cors
D’automne.

Emile Verhaeren, 1895