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पतझड़ / सुतिन्दर सिंह नूर

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मैं मुद्दत से एक पत्रहीन वृक्ष के नीचे बैठा हूँ
कई तूफ़ान गुज़र चुके हैं
हज़ार बार ज़िस्म को चीरता हुआ
सूरज निकला है।

अनेक राही मेरे समीप से गुज़र रहे हैं
"क्यों, थक गए हो?"
एक राही मुझसे पूछता है

"नहीं ऐसे ही, एक पल... एक पल..."
मैं कहता हूँ

"शायद कहीं पानी की बूँद हो!"
वे कहते जा रहे हैं।

वृक्ष पर अभी-अभी एक दूर से आया
पंछी बैठ गया है
उसकी चोंच में एक सुन्दर-सा फूल है
पत्ता-पत्ता अलग-अल्ग कर वह
वृक्ष की टहनियों पर टाँग रहा है
अब वह कोई गीत गा रह है
शायद बहार का गीत

टहनियाँ हिली हैं-
एक हवा का झोंका
एक तूफ़ान
पत्ते अलोप हो गए हैं
पंछी उदास और परेशान मेरी तरफ़ देख रहा है।


मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : शांता ग्रोवर