भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पतनी व्रता / कालीकान्त झा ‘बूच’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तोरा सुक्खक खातिर हम की- की नेॅ करबौ गय
बिना जान केॅ जीवौ प्राण अछैतो मरबौ गय
 
तोरे नैहर घऽर बनायब
कमर सारि सँ हऽर मंगायव
बापक चौड़ी लेबौ बटैया
उपजेबौ अन्न पानि रुपैया
देखि लिहैं तोहर ई कोठी मुनहर भरबौ गय...
 
बैंकक लोन सँ गाय अनायब
तकरा पोसब खूब चरायव
अपने हाथे दूहब भोरे
चाह बनाकऽ देबौं तोरे
तोॅ पड़ले-पड़ले पिबिहें हम प्याली भरबौ गय...
 
जल्दी ए दडिभंगा जएबौ
रंग- विरंगक अभरन लयबौ
तैयो जँ समधान ने हेबेॅ
यैह ने हमरा पूब भगेबेॅ
बिनु टीकट पकड़ा कऽ अलिपुर जेहल पडबौ गय...