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पता है, त(लाश)-2 / पीयूष दईया
Kavita Kosh से
गोचर से छिपा
गिर न जाय
कहीं
पंखुरियां जिसकी
फूल वह
हिलगा पर
खो बैठा
सारा
फूल भी
बचाने की कोशिश में
गोचर (न) रहा