भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पतियारो / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थारै सूं हर करती बगत
कद सोची ही म्हैं
कै इण भांत
खिंड जावैला
आपणै सपनां रो संसार।

हणै ई
ओळूं रै ओळावै
म्हैं गोख आवूं
मन रै खुणां-खचूणां
उण दुनियां रो अैनाण।

म्हनैं पतियारो है !