पत्ता-पत्ता भरते शजर पर अब्र बरसता देखो तुम / मनचंदा बानी
पत्ता-पत्ता भरते शजर<ref>पेड़</ref> पर अब्र<ref>बादल</ref> बरसता देखो तुम ।
मंज़र<ref>दृश्य</ref> की ख़ुश-तामीरी<ref>अच्छी बनावट</ref> को लम्हा-लम्हा देखो तुम ।
मुझको इस दिलचस्प सफ़र की राह नहीं खोटी करनी
मैं उजलत<ref>जल्दी में</ref> में नहीं हूँ यारो अपना रस्ता देखो तुम ।
आँख से आँख न जोड़ के देखो सू-ए-उफ़क़<ref>आसमान के छोर की तरफ़</ref> ऐ हमसफ़रो
लाखों रंग नज़र आएँगे तन्हा-तन्हा देखो तुम ।
पलक-पलक मन जोत जगाकर कोई गगन में बिखर गया
अब सारी शब ढूँढ़ो उसको तारा-तारा देखो तुम ।
सच कहते हो, इन राहों पर चैन से आते जाते हो
अब थोड़ा इस क़ैद से निकलो, कुछ अनदेखा देखो तुम ।
ख़ाली-ख़ाली से लम्हों के फूल मिलेंगे पूजा को
आने वाली उम्र के आगे, दामन फैला देखो तुम ।
अपनी ख़ुश-तकदीरी<ref>सौभाग्य</ref> जानो, अब जो राहें सहल हुईं
हम भी इधर से गुज़रे थे, हाल हमारा देखो तुम ।
रात दुआ मांगी थी 'बानी' हमने सबके कहने पर
हाथ अभी तक शल<ref>सुन्न</ref> हैं अपने, क़हर<ref>गुस्सा, क्रोध, नाराज़गी</ref> ख़ुदा का देखो तुम ।