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पत्ता एक झरा / अज्ञेय
Kavita Kosh से
सारे इस सुनहले चँदोवे से
पत्ता कुल एक झरा
पर उसी की अकिंचन
झरन के
हर कँपने में
मैं कितनी बार मरा!
बिनसर, 1978