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पत्ता तरोॅ के नेतोॅ / गुरेश मोहन घोष

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दुनियां बौव्वाय केॅ, नौकरी लेॅ ऐलोॅ छी
सगरे टौव्वय केॅ, कुत्तै पर रहनोॅ छी!

थरिहै पर कानी केॅ एत्तेॅ बड़ भेलोॅ छी-
मैय्यो सतेली छेॅ, कुत्तौ सें गेलोॅ छी!

मालिक के कुत्ता ने-फूलोॅ पर मुत्तै छै,
गद्दा पर लेटी केॅ-महलै में सुतै छै।

हाटोॅ सें लानी केॅ मांसोॅ खिलाबै छी,
रोज-रोज उठी केॅ भोरे टहलावै छी।

सोना सन सिकरी छै, बान्हलोॅ चमोटी में,
चप-चप खाय छै रोज दूध रोटी में।

मुँहों तेॅ झलकै छै-प्लेट आरी प्याली में,
हमरा पचास भूर-देखै छोॅ थाली में।

बोललौं जें मुन्नी सें-बात करेॅ मारै सें,
कारोॅ पर चूमै छै, कुत्तै केॅ प्यारोॅ सें,

साबून लगाय केॅ चरनों पखारै दी,
बहले तेॅ फेनोॅ में, गंजी थपकारै छी।

देखै छै गंजी पर-रौदो छहारे छै,
साबून चोरैन्हैं तों खुब्बे फटकारै छै।

हमरा छअैला सें पानी हटाबै छै,
जानी केॅ कुत्ते सें पैरो चटाबै छै।

गौरव छेॅ हमरा आदमी कहाबे के,
आपनोॅ तकदीरोॅ पर लोरे बहाबै के।

सड़लोॅ खेसाड़ी के सत्तू तेॅ चाटै छी,
चट्टी पर सूती केॅ दिन केन्हौं काटै छी।

हम्में दुबरैलोॅ छी-देखी जिन-खेलोॅ केॅ,
रोजे सिरहौना में तेलो फुलेलोॅ केॅ।

सोचै छी केना केॅ हलुआ ई आबै छेॅ,
पत्ता के ऊपरोॅ में खीरोॅ सजाबै छेॅ।

मारै लेॅ हमरा-डायन कोनोॅ पड़लोॅ छेॅ,
खाय लौं, मरी जांव, जीवन ई सड़लोॅ छेॅ।

देखै छी पत्ता तर-मुन्नी के नेती छेॅ,
माला फेराबै के देलो संकेतो छेॅ।