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पत्ता / रजनी अनुरागी
Kavita Kosh से
फिर गिरा सूखा पत्ता
एक नया जीवन मिला
कितनी ही कोंपलों को
उसकी छोड़ी जगह पर
निकलेंगी कितनी ही शाखें
उन पर खिलेंगे कितने ही नए पत्ते
कितनी हरियाली, कितनी हलचल होगी
कितना होगा जीवन
कोई कैसे बताए
क्या पता
कहीं काट ही न दिया जाये वृक्ष
किसी सड़क के नाम पर
पर अभी-अभी तो गिरा है
एक और पत्ता टूटकर
सैकड़ों कोंपलों को जगह देता