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पत्थर के सनम / मजरूह सुल्तानपुरी

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पत्थर के सनम, तुझे हमने, मुहब्बत का ख़ुदा जाना
बड़ी भूल हुई, अरे हमने, ये क्या समझा ये क्या जाना

चेहरा तेरा दिल में लिये, चलते चले अंगारों पे
तू हो कहीं, सजदे किये हमने तेरे रुख़सारों पे
हम सा न हो, कोई दीवाना, पत्थर के ...

सोचा न था बढ़ जाएंगी, तनहाइयां जब रातों की
रस्ता हमें दिखलाएंगी, शमा\-ए\-वफ़ा इन आँखों की
ठोकर लगी, फिर पहचाना, पत्थर के ...

ऐ काश के होती ख़बर तूने किसे ठुकराया है
शीशा नहीं, सागर नहीं, मंदिर\-सा इक दिल ढाया है
सारा आसमान, है वीराना, पत्थर के ..