भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पत्थर नहीं हुआ / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
रास्ता चलते
कौन जान सकता है
कि यह जो इतना ऊँचा
और मज़बूत
दीखता है पहाड़
थोड़ी-सी तेज़ हवा में
खिरने लगता है।
अभी यह
पत्थर नहीं हुआ।
(1989)