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पत्थर / नीलाभ
Kavita Kosh से
तुम अपने साथ लिए फिरते हो
हज़ारों वर्षों का इतिहास
तुम्हारी झुर्रियों में
दफ़न हैं
सैकड़ों कथाएँ
लेकिन इन दिनों मेरी मेज़ पर
अपनी लम्बी यात्रा के बीच
कुछ समय के लिए
विश्राम करते हुए
तुम कितने शान्त लगते हो
कभी-कभी मुझे महसूस होता है
तुम्हें हल्के से टकोरूँ तो तुमसे
संगीत का एक सोता फूट निकलेगा
(लन्दन, 1982)