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पत्थलगड़ी / अनुज लुगुन

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हिन्दी में लोगों ने एक मुहावरा बनाया — पत्थर फेंकना
हिन्दी के एक कवि ने लिखा — ‘पत्थर फेंक रहा हूँ ।’

लोगों ने एक फिलिस्तीनी बच्चे को
टैंक के सामने खड़े होकर
पत्थर फेंकते हुए देखा
यानी आप अपनी असहमति जता सकते हैं
या, दमन तेज हो तो प्रतिरोध स्वाभाविक है

लेकिन हिन्दी आदिवासियों की मातृभाषा नहीं है
और न ही वे पत्थरबाज़ हैं
उन्होंने तो सिर्फ़ इतना ही कहा कि
पत्थर उनकी पहचान का प्रतीक है
यह उन्हें उनके पूर्वजों से विरासत में मिला है
उनके लिए पत्थर ही पट्टा है
जो न धूप में पिघलता है और न बरसात में गलता है
वे पत्थर गाड़ेंगे और अपने होने का दावा करते रहेंगे

वे कहते हैं कि
पत्थरों पर निषेध लगाकर ही
सरकारें उनकी ज़मीन पर सेंध लगाती हैं

आदिवासियों का यह कथन हिंसक माना गया
सरकार ने कहा यह बग़ावत है
और जेल में डाले जाने लगे आदिवासी

कितनी अजीब बात है कि
हिन्दी आदिवासियों की मातृभाषा नहीं है
न ही वे पत्थर फेंकने का मुहावरा जानते हैं
वे तो सिर्फ पत्थर गाड़ना जानते हैं
फिर भी वे पत्थर फेंकने के दोषी माने गए

भाषा का यह फेर पुराना है
सरकार आदिवासियों की भाषा नहीं समझती है
वह उन पर अपनी भाषा थोपती है

आदिवासी पत्थलगड़ी करते हैं
और सरकार को लगता है
कि वे बग़ावत कर रहे हैं ।