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पत्रोत्तर बनाम उपालम्भ / रमेश रंजक

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तुमने क्यों लिखा ?
’मैं उदास’
सब कुछ तो है मेरे पास
तुमने क्यों लिखा ?

घाटी-सी रातें हैं
पर्वत-से दिन
बुझी-बुझी शामों के ढेर
भारी मन
कटखनी हवाएँ
नागफनी मौसम में
चीख़ती दिशाएँ

सपने कंकाल
पीर पड़ोसिन
तुलसी का सूखा बिरवा
शीशी में दवा
अन्धे दालान की दुआ
उमस भरी प्यास
आँगन में जीवित शव-सा
पढ़ता हूँ जिसका इतिहास

इतना तो है मेरे पास
तुमने क्यों लिखा ?
’मैं उदास’