Last modified on 12 जुलाई 2007, at 21:34

पथिक / भारत यायावर


रात-रात भर

बदरा रोए

मन को भिंगोए

भर गया तन का

पोरम-पोर


बिजली चमके

राह में थमके

खोज रहे हो अपना छोर


कहाँ है जाना

कहाँ से आना

किससे बँधी है डोर


चलना-चलना

ज़रा न डरना

आएगी ही

कभी तो भोर


(रचनाकाल : 1988)