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पथ / विजेन्द्र

उजड़ी फसल तलैया सूखी
कारी गाया रँभावै भूखी
पाँच रंग
पाँचो फीके हैं
चटक लगें
निखरे नीके हैं
फूल खिले
शाखें मुरझानी
रात दिन पिरती है घानी
आँयत पानी
पाँयत पानी
बूँद नही पीने को जानी
आसपास सूखा मरूथल है
मुझको उबड़-खबड़ पथ है तुमको तो
सीधा समतल है
जलती आँच तपावै मुझाको
कितनी दूर किया है तुझको
सींच रहा हूँ।
पते फुनगे।

2007