भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पद / 2 / रानी रघुवंशकुमारी
Kavita Kosh से
पिय चलती बेरियाँ, कछु न कहे समझाय।
तन दुख मन दुख, नैन दुख हिय भे दुख की खान।
मानो कबहूँ ना रही, वह सुख से पहचान॥
मन में बालम अस रही, जनम न छोड़ति पाय।
बिछुड़न लिखा लिलार में, तासों कहा बसाय॥
बालम बिछुड़न कठिन है करक करेजे हाय।
तीर लगे निकसे नहीं, जब लौं प्रान न जाय॥
जगन्नाथ के सिंधु में, डोंगी की गति जोय।
तास मति पिय के बिरह में, हाय हमारी होय॥