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पद / 8 / बाघेली विष्णुप्रसाद कुवँरि
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बाजै री बँसुरिया मनभावन की।
तुम हो रसिक रसीली वंशी अति सुन्दर या मन की।
या मुख ले वाको रस पीवे अंग अंग सुख या तन की॥
शोभा निरखत सखी सबै मिलि बिष्णु कँुवरि सुख पावन की॥