भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पनरोॅ अगस्त छै / दिनेश बाबा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राशन किरासन में
नेता के भाषण में
छात्र अनुशासन में
देश के प्रशासन में
जेहे दलाल छै
वही मालोमाल छै
लेकिन बेमतलब के
जे बजावै गाल छै
बुद्धि सें ओयसें तेॅ
करै कमाल छै
वही बड़ा लोगोॅ के
नाकोॅ के बाल छै
मुद्दा अनेक छै
लड़ना की नेक छै
हिम्मत तेॅ पस्त छै
पनरोॅ अगस्त छै।

2.

सेठ छै, बेपारी छै
अफसर सरकारी छै
मास्टर सें डाक्टर तक
सब्भे भ्रष्टाचारी छै
शिक्षा आरू मौत के
दोनो तेॅ बेपारी छै
दोसरोॅ तरफ नेता छै
हाथ लेनें गीता छै
हुनी सब्भे सच्चा छै
हुनका लेली बुद्धिजीवी
दूध पीतें बच्चा छै
यही सब मिली केॅ
थामलेॅ छै एक छोर
हिनखै रोॅ हाथोॅ में
देशोॅ के छै बागडोर
जनता केॅ भरी दोॅम
मिललोॅ शिकस्त छै
पनरोॅ अगस्त छै।

3.

सुच्चा घी के स्वाद कहाँ छै
खादो में भी खाद कहाँ छै
नकलीपन के माहौलोॅ में
लोगोॅ के बुनियाद कहाँ छै
सब जानै छै देखोॅ भायजी
खुदरा पैसा गेल्हौं बिलाय
बिजली चोरी करथैं छै सब
देलकै काटी केॅ तारो गलाय
एन्हें लोग बनी गेलोॅ छै
देश के लेली आज बलाय
दू नम्बर के धंधा में सब
आज देश मे व्यस्त छै
पनरोॅ अगस्त छै।

4.

कहाँ जैभौ, की करभौ
घुरी-फिरी तोंही मरभौ
चारो तरफ देशोॅ में
ऐसने तमाशा छै
चोरी छै, डाका छै
देश के तरक्की तेॅ
पानी के बताशा छै
आज सब्भे मिली केॅ
खुशी मनावै छी
देश आरो नेता के
गीत सब्भे गाबै छी
बाढ़ होय, सूखा होय
जीओॅ चाहे, मरोॅ कोय
नेता तेॅ नेता छै
पड़लोॅ अलमस्त छै
पनरोॅ अगस्त छै।

5.

इतिहासोॅ में आबेॅ मिलथौं
सत्य-अहिंसा-सच्चाई
उग्रवाद, उन्माद व्याप्त छै
भाई केॅ मारै छै भाई
खून होय छै फौदारी होय छै
झगड़ा द्वारी-द्वारी होय छै
की बोलै छोॅ क्रांति-क्रांति
बम पिस्तौल कमर में खोंसी
बोलै छोॅ की शांति-शांति
मनोॅ में राम, बगल में छूरी
जनमानस के छै मजबूरी
नीचू सें ऊपर तक केतना
रोगग्रस्त आपनोॅ समाज छै
गौरवशाली जे रहथ पहिनें
ओयसनोॅ भारत आज कहाँ छै
सोची ऐसने बात सिनी सब
मन होलोॅ संत्रस्त छै
पनरोॅ अगस्त छै।

6.

गाँधी, नेहरू, जयप्रकाशजी
शास्त्री, इन्दिरा आरू सुभाषजी
बाल्मीकि आरू तुलसीदासजी
मीरा, भूषण, कालिदासजी
राजेन्द्र बाबू, राधाकृष्णजी
जाकिर, मालवीय मदनमोहनजी
तिलक, पटेल तेॅ जान छेलै
चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह
आपनोॅ देश के शान छेलै
नानक आरू कबीर कहाँ छै
राम कहाँ छै, श्याम कहाँ छै
भीम, अर्जुन रङ वीर कहाँ छै
सौभाग्य सूर्य आबेॅ देश के
आपनोॅ लागै छै कि अस्त छै
पनरोॅ अगस्त छै।

7.

देश के सजग-प्रहरी नांखी
आज तेॅ सचमुच पत्रकार छै
जे सच्चा आरू ईमानदार छै
बाहर सें भीतर तक सगरो
वही वस्तुतः पहरेदार छै
देश के पथ-निर्देशक छै जे
हुनका नमन तेॅ बार-बार छै
आज घुटालामय देशोॅ में
ऐसने के दरकार अभी छै
ऐन्हें सब बुद्धिजीवी पर
टिकलोॅ भी सरकार अभी छै
रुग्न सोच गंदा विचार के
कलमधनी कुछ कलमकार छै
जेकरा लेली लेखन जबकि
मात्र एकठो व्यापार छै
हेन्हें बुद्धिजीवी अखनी
केवल मौकापरस्त छै
पनरोॅ अगस्त छै।