भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पन्द्रह अगस्त का भारत मां / उमेश चौहान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कबहूँ सूखे माँ झूमि मेघ जस सूपन जलु ढरकावत है,
पन्द्रह अगस्त का भारत मां वैसन आजादी आवत है।

कहुँ झूरा परिगा ख्यातन माँ, कहुँ कुरिया बहिगै बहिया माँ,
असि कीमति वहिकै घटी मनौ लगि राहु-केतु गे रुपया माँ,
जिनका हम समझा कर्णधार, उइ करनी करि घरु भरै लागि,
गांधी-नेहरू कै कसम खाय , व्यापार वोट का करै लागि,

जैसे घनघोर अँधेरिया माँ जुगनू प्रकाश फैलावत हैं,
पन्द्रह अगस्त का भारत मां वैसन आजादी आवत है।

मनई का मनई चूसि रहा, कुछु इरखा-दोखु ऐस बढ़िगा,
जस मेझुकी किरवा लीलत है, मेझुकी का साँपु चट्ट करिगा,
दुमुही असि जिम्मेदार हियां, जिनका बसि दौलत प्यारी है,
जेतना आगे वोतनै पीछे, इनकै कुछु हालति न्यारी है,

जैसे चम्पा कै झूरि कली सारी बगिया महकावति है,
पन्द्रह अगस्त का भारत मां वैसन आजादी आवत है।

सबु कीन धरा माटी मिलिगा, छल-छंद क्यार रोजगारु चढ़ा,
जस काटे ते हरियाय दूब, वैसय दुइ नम्बरदार बढ़ा,
घर मां अभियान चला अस की, आबादी मां खुब रंग सजे,
जैसे ई पैंसठ बरसन मां, नब्बे करोड़ देवता उपजे,

जैसे चौराहे पर कबौ-कबौ हरि गाड़ी बिरिक लगावत है,
पन्द्रह अगस्त का भारत मां वैसन आजादी आवत है।

अब ‘चंद्रयान’ पूजौ लेकिन पूंजिव का तो कुछु ख्याल करौ,
जो कर्जु चढ़ा हरि मूड़े पर, वोहिका तो तनिक मलाल करौ,
अंग्रेजन यहिका खुब चूसा, दुइजहा देशु यहु भारत है,
परि जाई ज्यादा बोझु अगर, तौ यहिका मरबु यथारथ है,

जैसे स्वाती की बूँदिन ते पपिहा निज प्यास बुझावत है,
पन्द्रह अगस्त का भारत मां वैसन आजादी आवत है।