भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
परख / चंद्रप्रकाश देवल
Kavita Kosh से
रुत आयां इज ठाह पड़ै
पण चांणचक
के औ झकरंडा रौ झाड़ कोनीं हौ
जिणनै इत्ता बरसां
औ जांण सींच्यौ
के औ झकरंडौ है।
इणरा फूल सोसनी कोनीं
पीळास माथै है
कदास, आंवळ लागै
औ कैय अपां अचंभै तौ झिल जावां
पण नीं जांणता थका,
साव गाफल
के इण बिचाळै जिकौ समियौ नीसरग्यौ
वा आवगी जूंण ही
अबै इण नवी जांणकारी रौ कांई करां!