परथम मास जब चढ़ल, देवता मनाबल रे / अंगिका लोकगीत
प्रस्तुत गीत में स्त्री के गर्भवती होने पर प्रत्येक मास में प्रकट होने वाले उसके गर्भ के लक्षणों का उल्लेख किया गया है तथा उसके पैर-विशेष के उठने से पुत्र या पुत्री होने का अनुमान लगाने का वर्णन हुआ है। पुत्र होने पर सबको तो और ही बातों की चिंता है, लेकिन ननद बधैया लेने के लिए उतावली है।
परथम मास जब चढ़ल, देवता मनाबल रे।
ललना रे, आजु सुदिन दिन भेल, कि सोनमा नहाओल रे॥1॥
दोसर मास जब आएल, चित फरिआएल<ref>उबकाई आने लगी</ref> रे।
ललना रे, पानहुक<ref>पान का</ref> बीरा न सोहाए, असोग<ref>अशोक; एक पेड़-विशेष</ref> मन भाबै रे॥2॥
तेसर मास जब आएल, सासु बिहुँसी बोलै रे।
ललना रे, दहिन पैर<ref>गर्भवती के चलते समय पहले दाहिने पैर के उठने से पुत्र पैदा होने का अनुमान किया जाता है</ref> उठै छैन, होरिला के लछन रे॥3॥
चारिम मास जब आएल, ननदी बिहुँसी बोलै रे।
ललना रे, मोर घर जनमत नंदलाल, सोहर गाबे आएब रे॥4॥
पाँचम मास जब आएल, गोतनो<ref>गातिनी; दायादिन</ref> से अरज करु रे।
ललना रे, मोर सक<ref>मुझसे</ref> ना होएत रसोइया, कि अंग लागे भारियो<ref>भारी</ref> रे॥5॥
छठम मास जब आएल, सामी से अरज करु रे।
ललना रे, सेजिया मोहि न सुहाबै, कि अंग भेल भारी मोर रे॥6॥
सातम मास जब आएल, सामी से अरज करु रे।
ललना रे, गरमी मोहि न सुहाबै, कि उखेबा<ref>पंखा</ref> डोलाए देहो रे॥7॥
आठम मास जब आएल, आठो अँग भारी भेल रे।
ललना रे, छन छन चीर पहिरऊँ, त छन छन ससरै<ref>फिसल जाता है</ref> रे॥8॥
नवम मास जब आएल ननदो बिहुँसी बोलै रे।
ललना रे, मोर घर जनमत नंदलाल, बधैया हम लूटब रे॥9॥
दसम मास जब आएल, होरिला जनम लेल रे।
ललना रे, बाजे लागल उधब<ref>उत्सव</ref> बधाबा, अजोधेया लुटाएब रे॥10॥